DC Generator क्या हैं इसके प्रकार और सिद्धांत

नमस्कार दोस्तो, आज के इस पोस्ट में हम DC Generator के बारे में समस्त जानकारी पढेगे तो इस पोस्ट को पूरा जरूर पढ़े।

पिछले पेज पर हमने VPN की जानकारी शेयर की थी तो उस आर्टिकल को भी पढ़े।

चलिए आज की इस पोस्ट में हम Alternator की समस्त जानकारी पढ़ते और समझते हैं।

DC Generator का परिचय

डीसी मशीन को दो प्रकार से काम में लिया जा सकता है अगर डीसी मशीन को डीसी जनरेटर के रूप में उपयोग किया जाए तो डीसी जनरेटर मैकेनिकल ऊर्जा को इलेक्ट्रिकल ऊर्जा में परिवर्तित करती है डीसी जनित्र व डीसी मोटर की संरचना एक जैसी होती है इसी कारण मशीन को जनित्र की तरह काम में ले सकते हैं

DC Generator क्या है

DC Generator अर्थात Direct Current Generator यह एक ऐसा इलेक्ट्रिकल मशीन है जो मैकेनिकल ऊर्जा को विधुत ऊर्जा के Direct Current के रूप में परिवर्तित करता है। यह माइकल फैराडे के Electromagnetic Induction सिद्धांत पर कार्य करता है। 

DC Generator का बनावट

DC जनरेटर निम्न मुख्य भाग होते हैं

1. शाफ़्ट (Shaft)

DC Generator तथा DC Motor के बनावट में ज्यादा कुछ अंतर नहीं होता है। इनमे अंतर सिर्फ Energy Flow का होता है। इसलिए DC Generator तथा DC Motor को सम्मिलित रूप से DC मशीन कहा जाता है। 

DC मशीन में योक (Yoke) पोल (Pole) पोल शो, फील्ड वाइंडिंग, आर्मेचर कोर, आर्मेचर वाइंडिंग, कम्यूटेटर तथा ब्रश जैसे कई भाग शामिल होते है। इन सभी के अलावा DC मशीन के अन्य दो महत्वपूर्ण भाग होते है जिन्हे रोटर तथा स्टेटर कहते है।  

2. Stator

जैसा नाम से ही पता चल रहा है की यह DC Generator का Static अर्थात स्थिर रहने वाला भाग है जो स्थिर रहता है। इसका मुख्य कार्य मशीन के अंदर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने वाले मैग्नेटिक सिस्टम को सपोर्ट करना तथा सुरक्षा प्रदान करना होता है।

छोटे स्तर के DC Generator चुम्बकीय फ्लैक्स उत्पन्न करने के लिए स्थाई चुंबक का प्रयोग किया जाता है लेकिन बड़े DC जनरेटर में चुम्बकीय फ्लक्स उत्पन्न करने के लिए विधुत चुम्बक (Electromagnet)  प्रयोग किया जाता है। 

3. रोटर (Rotor) 

यह DC Generator का Rotate अर्थात घूमने वाला भाग है। यह DC जनरेटर का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह आकर में बेलनाकार होता है तथा इसका ऊपरी बाहरी सतह जो की आयरन तथा हाई ग्रेड सिलिकॉन का बना होता है।

पर स्लॉट बनाये बनाए गए होते है। रोटर में होने वाले Eddy Current लॉस को कम करने ही हाई ग्रेड सिलिकॉन का प्रयोग किया जाता है। रोटर को ही कभी कभी आर्मेचर कोर भी कहा जाता है। 

4. योक (Yoke)

DC जनरेटर के बाहरी भाग को योक कहा जाता है। यह मशीन को बाहर से सुरक्षा प्रदान करता है। यह स्टील या कास्ट आयरन का बना होता है। 

5. पोल (Pole)

DC जनरेटर के स्टेटर के आंतरिक हिस्से में जगह जगह पर कुछ निकले हुए हिस्से होते है। इनकी संख्या निश्चित होती है। इनपर Copper के पतले वायर लपेटे हुए होते है। इन उभरे हुए भाग को ही पोल कहा जाता है। DC generator में पोल का मुख्य कार्य मैग्नेटिक फ्लक्स उत्पन्न करना होता है।

पोल को स्टेटर से वेल्डिंग या नॉट बोल्ट द्वारा जोड़ा जाता है। पोल के ऊपरी भाग जो रोटर के तरफ खुलता है, के सतह को उभरा हुआ बनाया जाता है।

पोल के इस उभरे हुए भाग को पोल शो (Pole Shoe) कहा जाता है। पोल शो का मुख्य कार्य चुम्बकीय फ्लक्स को Unifromaly रूप से डिस्ट्रीब्यूट करना है। 

6. Commutator 

मैकेनिकल ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में बदलने वाला किसी भी प्रकार के जनरेटर हमेशा AC (Current या Voltage) ही उत्पन्न करता है।

जनरेटर द्वारा AC Voltage को DC वोल्टेज में परिवर्तित करने के लिए  जनरेटर के शाफ़्ट पर तांबे के विभिन्न खंड उपयोग किये जाते है। प्रत्येक खंड को माइका द्वारा एक दूसरे को अलग किया जाता है। ताम्बे  इस खंड को जो AC को DC में बदलता है, कम्यूटेटर कहलाता है। 

7. ब्रश 

चूँकि DC जनरेटर में विधुत उत्पादन आर्मेचर में होता है और आर्मेचर घूमते रहता है। इसलिए आर्मेचर में उत्पन्न विधुत को बाहरी सर्किट में लाने के लिए कार्बन ब्रश का प्रयोग किया जाता है। कार्बन ब्रश एक स्प्रिंग सिस्टम द्वारा जनरेटर के शाफ़्ट से जुड़ा रहता है।

DC Generator का कार्य सिद्धांत

दोस्तों डीसी जनरेटर में जैसा कि हम जानते हैं कि इसमें एक मैग्नेटिक फील्ड उपस्थित रहता है। विद्युत चुंबकीय क्षेत्र के बीच में हमारा आर्मेचर रहता है। जिसमे आर्मेचर चालक लगे होते हैं।

अब चुकी जनरेटर को प्राइम मूवर के द्वारा आर्मेचर को घुमाया जाता है। अतः इसके साथ-साथ आर्मेचर चालक भी घूमते हैं। अब हम जानते हैं कि यह आर्मेचर विद्युत चुंबकीय क्षेत्र में स्थित है। अतः आर्मेचर चालक जिस स्पीड से घूमता है उसी स्पीड से विद्युत चुंबकीय फ्लक्स को काटता है।

जब कोई धारावाही चालक या क्वायल किसी विद्युत चुंबकीय क्षेत्र में घूमता है तो उस चालक या कुंडली के दोनों सिरों पर एक emf उत्पन्न होता है। अगर हम इस क्वायल पर कोई लोड लगा दे तो क्वाइल में धारा बहने लगती है।

यह विद्युत उत्पादन का एक सिंपल सा सिद्धांत है उसे जो हर प्रकार के जनरेटर में इस्तेमाल होता है। इस सिद्धांत से जैसा कि हम जानते हैं कि हमें अल्टरनेटिंग करंट उत्पन्न होता है।

लेकिन हम डीसी जनरेटर की बात कर रहे हैं तो जनरेटर में इस अल्टरनेटिंग करंट को डीसी करंट में बदलने के लिए एक प्रकार की व्यवस्था लगाई जाती है जिसे हम कमयुटेटर कहते हैं। यह कमयुटेटर बाई डायरेक्शनल (bidirectional signal) सिग्नल को यूनिडायरेक्शनल सिग्नल (unidirectional signal) में परिवर्तित करता है।

डी.सी. जनित्र या डायनमो, फैराडे के विद्युत – चुम्बकीय प्रेरण सिद्धान्त पर आधारित होता है। इस सिद्धान्त के अनुसार, “यदि किसी चालक को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में इस प्रकार गतिमान किया जाए कि उसकी गति से चुम्बकीय बल रेखाओं का छेदन होता हो तो उस चालक में वि.वा.ब. पैदा हो जाता है ।

DC Generator के प्रकार

डीसी मशीन कितने प्रकार का होता है। उतने ही प्रकार के डीसी जनरेटर भी होते हैं। क्योंकि डीसी मशीन को ही तो हम डीसी जनरेटर के रूप में इस्तेमाल करते हैं। डीसी जनरेटर भी मुख्यतः दो प्रकार का होता है।

जनरेटर की फील्ड किस तरह से एक्साइट होती है उसके आधार पर dc generator के दो प्रकार होते है।

  1. सेपरेटली एक्साइटिड जनरेटर (Separately excited Generator)
  2. सेल्फ एक्साइटेड जनरेटर (Self-excited Generator)

1. Separately excited Generator 

यह जनरेटर वह होते है जिनके फील्डमैगनेट को energinsed करने के लिए अतिरिक्त d.c करंट की जरुरत पड़ती है। जैसा कि नाम से ही लग रहा है कि इस जनरेटर को एक्साइट करने के लिए एक अलग से excitation सप्लाई की जरूरत पड़ती है।

जनरेटर में एक अलग से excitation winding लगी होती है जिसे अलग से एक सप्लाई दिया जाता है। इस प्रकार के जनरेटर में residual मैग्नेटिज्म ना होने के कारण इसे अलग से excitation सप्लाई के द्वारा एक्साइट किया जाता है।

उपयोग :- यह जनरेटर बहुत कम जगह पर प्रयोग किया जाता है। क्योंकि इसको चालू करने के लिए एक अलग से एक्स आईटी असम सप्लाई की जरूरत पड़ती है। अतः इसका उपयोग स्पेशल एप्लीकेशन के लिए जैसे जहाज में डीसी सप्लाई की आपूर्ति के लिए तथा एयरक्राफ्ट में भी डीसी सप्लाई की आपूर्ति के लिए किया जाता है।

इसका सबसे महत्वपूर्ण उपयोग वार्ड लियोनार्ड मेथड (Ward Leonard Method) में किया जाता है। यह डीसी मोटर की गति नियंत्रण की विधि है। जिसमें मुख्य जनरेटर के रूप में सेपरेटली एक्साइटिड जनरेटर का इस्तेमाल किया जाता है।

2. Self Excited DC Generator

इस प्रकार के जनरेटर में इसके फील्ड मैग्नेट को किसी अलग सप्लाई या सोर्स से एक्साइट नहीं करना पड़ता है। इसके फील्ड मैग्नेट में उपस्थित Residual magnetism के कारण कम मात्रा में आर्मेचर में e.m.f. पैदा हो जाता है। जिससे मैग्नेटिक पोल एक्साइट हो जाता है।

चलिए इसकी क्रिया को आसान भाषा में समझते हैं। सबसे पहले हमें Residual magnetism को समझना पड़ेगा। जब हम किसी इलेक्ट्रोमैग्नेट पोल में क्वायल के माध्यम से सप्लाई देते हैं। तो पोल में उपस्थित डोमेन एलाइन (align) हो जाते हैं।

मतलब की मैग्नेट के डोमिन की गति की दिशा एक समान हो जाती है। और जब सप्लाई हटाते हैं तो मैग्नेटिक पोल के डोमेन फिर zig – zag motion में गति करने लगते हैं।

लेकिन सप्लाई हटाने के बाद भी कुछ डोमेन ऐसे होते हैं, जो एक समान दिशा में गति करते रहते हैं। यही डोमेन जो सप्लाई हटाने के बाद भी पोल में एक समान दिशा में गति करते हैं या align रहते हैं। Residual magnetism पैदा करते हैं। जिसकी मात्रा बहुत कम होती है।

अतः जब वह जनरेटर में आर्मेचर घूमता है तो चुकी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पोल में पहले Residual magnetism के कारण residual flux रहता है। जिससे आर्मेचर चालक उस flux को काटता है, और थोड़ा सा emf पैदा होता है। अब वह emf मैग्नेटिक पोल के लिए सप्लाई का काम करता है तथा पोल में और ज्यादा फ्लक्स बनता है।

जैसे-जैसे आर्मेचर का स्पीड बढ़ता है वैसे वैसे emf का मान बढ़ता है। यह उपयुक्त प्रक्रिया जनरेटर में काफी तेजी से होता है। और यह emf जनरेटर में पैदा हो जाती है।

इन जनरेटर में खुदके उत्पन्न किये गए करंट की मदद से फील्ड को excite किया जाता है | आवासीय चुंबकत्व की वजह से पोल पर कुछ फ्लक्स हमेशा ही रहते है, जब आर्मेचर घुमता है तब e.m.f और करंट induced हो जाता है उसकी वजह से जनरेटर सेल्फ excitedहोता है।

Self excited generator के उसके winding के हिसाब से तीन प्रकार होते है।

  • शंट (Shunt)
  • सीरीज (Series)
  • कंपाउंड (Compound)

(a). शंट वूंड (Shunt wound)

इस प्रकार में फील्ड विन्डिंग आर्मेचर कंडक्टर के समानांतर याने की parallel में होती है, और इनमे वोल्टेज फुल होता है।

(b). सीरीज वूंड (Series wound)

इस प्रकार में फील्ड विन्डिंग आर्मेचर कंडक्टर के शृंखला याने की series में होती है, और इनमे वोल्टेज फुल होता है। इसमे से फुल लोड करंट जाता है इसकी वजह से इनमे कम टर्न होते है और वायर का अकार बड़ा होता है। इनका इस्तेमाल कुछ खास जगहों पर ही किया जाता है जैसे की बूस्टर में।

(c). कंपाउंड वूंड (Compound wound)

इसमे सीरीज और शंट के कॉम्बिनेशन का इस्तेमाल किया जाता है, यह या तो शोर्ट शंट या long शंट होती है। इसमे शंट फील्ड सीरीज फील्ड से ज्यादा स्ट्रोंग होती है। 

DC जनरेटर के भाग

डीसी जनरेटर के निम्नलिखित मुख्य भाग होते है।

  1.  बॉडी (Body)
  2. फील्ड पोल(Field pole)
  3. आर्मेचर (Armature)
  4. शू सहित लैमिनेटेड पोल(Laminated pole with shoe)
  5. ब्रश तथा ब्रश होल्डर(Brush and brush holder)
  6. कूलिंग फैन (Cooling fan)
  7. आई बोल्ट (Eye bolt)
  8. टर्मिनल बॉक्स (Terminal Box)
  9. बेयरिंग (Bearing)
  10. एंड कवर   (End cover)
  11. शाफ़्ट तथा पुली (Shaft and pulley)
  12. बेड प्लेट (Bed plate)

1. बॉडी (Body)

मशीन के बाहरी भाग को बॉडी या योक कहा जाता है। यह कास्ट आयरन अथवा कास्ट स्टील (मिश्र धातु) से बनाई जाती है।

बॉडी का मुख्य कार्य 

  • चुंबकीय बल रेखाओं के लिए पथ प्रदान करना है।
  • मशीन के सभी भागों को सुरक्षित रखना।

बॉडी के दोनों तरफ प्लेटे लगी होती है, जो मशीनों को पूरी तरह ढक देती है | बॉडी पर आवश्यकतानुसार आई बोल्ट, लेग, बेड प्लेट इत्यादि को फिट किया जाता है | बड़ी मशीनों की बॉडी कास्ट स्टील से तथा छोटी मशीनों की बॉडी कास्ट आयरन से बनाई जाती है।

2. फील्ड पोल (Field Pole)

 बड़े आकार के वाले डायनेमो तथा DC जनरेटर में चुंबकीय क्षेत्र स्थापित करने के लिए  फील्ड  पोल तथा छोटे आकार वाले डायनेमो में  स्थाई चुंबक का प्रयोग किया जाता है।

छोटे आकार वाले डायनमो में तो चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित करने के लिए स्थायी चुम्बक प्रयोग किए जाते हैं परन्तु बड़े आकार वाले डायनमो सध्या डी.सी. जनित्र में फील्ड पोल्स प्रयोग किए जाते हैं । फील्ड पोल्स निम्न दो प्रकार के होते हैं।

3. आर्मेचर (Armature)

यह सिलिकॉन स्टील की पत्तियों को एक साथ मिलाकर बेलनाकर ठोस ड्रम जैसी आकृति में बना होता है। आर्मेचर ड्रम में आर्मेचर क्वायल को फिट करने के लिए पतले खांचे (Slots) कटे होते हैं।

आर्मेचर को शाफ़्ट के ऊपर फिट किया जाता है और शाफ्ट को बेयरिंग की सहायता से DC जनरेटर बॉडी में स्थापित किया जाता है। आर्मेचर में स्लॉट खुले, अर्द्ध बंद तथा बंद प्रयोग में लाये जाते हैं।

आर्मेचर  कोर लैमिनेटेड होती है जिससे कि उसमें एड्डी करंट लॉस तथा हिस्ट्रेसिस लॉस का मान कम किया जा सके। लेमिनेटेड पत्तियों की मोटाई 0.35 मिमी से 0.6 मिमी तक रखी जाती है। आर्मेचर का मुख्य कार्य चुंबकीय फ्लक्स का छेदन करके उसमें स्थापित आर्मेचर वाइंडिंग में विद्युत वाहक बल (emf) को उत्पन्न करना होता है।

4. शू सहित लैमिनेटेड पोल (Laminated pole with shoe)

यह लैमिनेटेड कास्ट स्टील अथवा Annealed स्टील से बनाए जाते हैं। इसके ऊपर फील्ड वाइंडिंग को स्थापित किया जाता है और बोल्ट्स की सहायता से डीसी जनरेटर के बॉडी पर कस दिया जाता है। अथवा, 

इस प्रकार के पोल में, पोल तथा पोल – शू दोनों ही एक साथ लेमिनेटड कास्ट – स्टील अथवा एनील्ड स्टील (annealed steel ) से बनाए जाते हैं इन पर फील्ड – वाइण्डिग स्थापित करके इन्हें बोल्ट्स के द्वारा योक पर कस दिया जाता है, बड़ी मशीनों में प्रायः यही विचि अपनाई जाती है।

5. ब्रश तथा ब्रश होल्डर (Brush and brush holder)

DC जनरेटर द्वारा उत्पन्न विद्युत वाहक बल को कम्युटेटर से बाहरी परिपथ को प्रदान करने के लिए जिस साधन का प्रयोग किया जाता है, ब्रश कहलाता है।

ब्रश को ब्रश होल्डर में लगाया जाता है। बड़ी मशीनों में कार्बन तथा कॉपर के मिश्रण से बना ब्रश तथा छोटी मशीनों में कार्बन ब्रश का प्रयोग किया जाता है।

ब्रश का मुख्य कार्य कम्युटेटर के साथ फिसलन करता हुआ संपर्क स्थापित करना। ब्रश आयताकार होता है और इसे आयताकार पीतल के दोनों ओर खुले बॉक्स में फिट कर दिया जाता है।

कम्युटेटर पर  ब्रश का दबाव बनाए रखने के लिए एक स्प्रिंग पत्ती लगाई जाती है। स्प्रिंग का दबाव 0.1 से 0.25 kg /cm2 तक रखा जाता है।

Note :

कार्बन एक ऐसा पदार्थ है जो ऑक्सीकृत नहीं होता है और यह कम्युटेटर के साथ सदैव एक अच्छा संयोजन बनाए रखता है।

कार्बन अधिक तापमान पर भी ठीक प्रकार से कार्य कर सकता है क्योंकि कम्युटेटर के साथ घर्षणरत रहने के कारण ब्रश  काफी गर्म हो जाती हैं।

तापमान बढ़ने से कार्बन की प्रतिरोध का मान घटने लगता है जिसके कारण यह उच्च प्रतिरोध का अवगुण भी दूर हो जाता है इसलिए कार्बन ब्रश DC जनरेटर के लिए अधिक उपयोगी होता है।

कार्बन एक नरम पदार्थ होता है जो स्वयं घिस  जाता है और कम्युटेटर को घिसने नहीं देता है।

6. कूलिंग फैन (Cooling fan)

DC मशीन को ठंडा रखने के लिए आर्मेचर पर स्थित कम्युटेटर सिरे के विपरीत सिरे पर एक पंखा फिट किया जाता है जो आर्मेचर के साथ घूमता है और ठंडी हवा देकर जनरेटर को ठंडा रखने का कार्य करता है। अथवा,

मशीन को ठण्डा रखने के लिए आर्मेचर पर , कम्यूटेटर वाले सिरे के विपरीत सिरे पर, एक कास्ट – आयरन का बना पंखा जड़ दिया जाता है। जैसे ही आर्मेचर  प्रारम्भ करता है , यह भी घूमने लगता है और ठण्डी हवा देकर मशीन को ठण्डा रखता है।

7. आई बोल्ट (Eye bolt)

आई बोल्ट DC मशीन को उठाने के लिए मशीन की बॉडी पर एक गोल सुराख़ वाला हुक लगाया जाता है, जिसे आई बोल्ट कहा जाता है।

आई बोल्ट को क्रेन की हुक  में बांधकर मशीन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवश्यकतानुसार ले जाने के लिए उपयोग किया जाता है। अथवा, 

मशीन को उठाने के लिए प्राय : उसकी बॉडी पर एक गोल छिद्र वाला हुक लगाया जाता है जो आई – बोल्ट कहलाता है।

8. टर्मिनल बॉक्स (Terminal box)

डीसी मशीन की बॉडी पर बैकेलाइट की एक मोटी सीट लगी होती है जिस पर नट बोल्ट के द्वारा आर्मेचर कम्युटेटर के संयोजन सिरे फिट किये होते हैं।

इसे टर्मिनल बॉक्स कहा जाता है। इसका मुख्य कार्य DC जनरेटर द्वारा उत्पन्न किया गया विद्युत वाहक बल लोड को प्रदान करना।

मशीन की बॉडी पर बैकेलाइट की एक मोटी शीट जड़ी रहती है जिस पर नट – बोल्ट के द्वारा आमेचर – कम्यूटेटर के संयोजक सिरे कसे होते हैं। यह व्यवस्था टर्मिनल – बॉक्स कहलाती है।

इसका मुख्य कार्य है – डी.सी. जनित्र द्वारा पैदा किया गया वि.वा.ब. लोड को प्रदान करना।

9. बेयरिंग (Bearing)

बेयरिंग का मुख्य कार्य आर्मेचर शाफ़्ट को तीव्र गति पर घूमने के लिए स्वतंत्रता प्रदान करना। छोटी मशीनों में बुश बेयरिंग  तथा बड़ी मशीनों में बॉल या रोलर बेयरिंग का प्रयोग किया जाता है। बेयरिंग को आर्मेचर शाफ्ट के दोनों एंड प्लेट्स पर कसा जाता है। अथवा,

आमेचर – शाफ्ट को बियरिंग के द्वारा एण्ड – प्लेट्स पर कसा जाता है। बियरिंग्स की संख्या दो होती है। छोटी मशीनों में बुश – बियरिंग (bush – bearing) प्रयोग की जाती है और बड़ी मशीनों में बाल – बियरिंग अथवा रोलर – बियरिंग (ball – bearing or roller – bearing) प्रयोग की जाती हैं। बियरिग्स का मुख्य कार्य आर्मेचर शाफ्ट को तीव्र गति पर घूमने की स्वतन्त्रता प्रदान करना है।

10. एंड कवर (End Cover)

एंड कवर को एंड प्लेट भी कहा जाता है। DC जनरेटर की बॉडी कि दोनों तरफ़ कास्ट आयरन के  बने ढक्कन लगाए जाते हैं। एंड कवर में बेयरिंग को फिट किया जाता है।

कम्युटेटर की तरफ वाले हिस्से को फ्रंट एंड कवर तथा दूसरे कवर को रियर एंड कवर कहा जाता है। मशीन को ठंडा रखने के लिए इसमें कई छिद्र बनाए जाते हैं। अथवा, 

जनित्र की बॉडी के दोनों ओर दो कास्ट – आयरन से बने ढक्कन लगाए जाते हैं। इनमें बियरिंग लगी होती हैं और मशीन को ठण्डा रखने के लिए कुछ छिद्र बने होते हैं ।

इन्हें एण्ड प्लेट (end plate) भी कहते हैँ। कम्यूटेटर की तरफ वाले कवर को फ्रन्द – एण्ड कवर (front – end cover) तथा दूसरे कवर को रियर – एण्ड कवर (rear – end cover) कहते हैं।

11. शाफ़्ट तथा पुली (Shaft and Pulley)

पुली या शाफ़्ट, आर्मेचर तथा कमयुटेटर के लिए यह आधार का कार्य करती है। शाफ़्ट को बेयरिंग के द्वारा DC जनरेटर के एंड प्लेट पर कस दिया जाता है।

शाफ़्ट  को माइल्ड स्टील के द्वारा बनाया जाता है। DC मशीन को चलाने के लिए शाफ़्ट के एक सिरे पर पुली को फिट कर दिया जाता है जिसे  इंजन या टरबाइन इत्यादि से जोड़ने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। अथवा,

आमेचर तथा कम्यूटेटर के लिए यह आधार का कार्य करती है। इसे बियरिंग्स के द्वारा एण्ड – प्लेट्स पर कस दिया जाता है। यह नर्म लोहे ( mild steel ) की बनी होती है।

शाफ्ट के एक सिरे पर एक पुली कस दी जाती है जो मशीन को चलाने के लिए उसे टरबाइन आदि से जोड़ने के लिए प्रयोग की जाती है।

12. बेड प्लेट (Bed plate)

DC जनरेटर की आधार को बेड प्लेट कहा जाता है। यह कास्ट आयरन का बना होता है जिसे फाउंडेशन पर नट बोल्ट की सहायता से कस दिया जाता है।

मशीन के आधार को बैड – प्लेट कहते हैं। यह कास्ट – आयरन से बनाई जाती है और इसे बोल्ट्स के द्वारा ‘फाउन्डेशन‘ पर कस दिया जाता है।

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